संत रविदास कौन थे? और उनकी जयंती क्यों 10 चरणों में मनाई जाती है?
संत रविदास: एक अनमोल महान संत, समाज सुधारक और भक्त कवि
1. संत रविदास: एक परिचय
संत रविदास कौन थे और क्यों मनाया जाता है? संत रविदास 15वीं शताब्दी के महान संत, समाज सुधारक और भक्ति कवि थे। उनका जन्म वाराणसी के पास गोवर्धनपुर गाँव में एक चर्मकार परिवार में हुआ था। वे भक्ति आंदोलन के प्रमुख संतों में से एक थे और उनकी शिक्षाएँ आज भी समाज में समानता और प्रेम का संदेश देती हैं। संत रविदास का मानना था कि ईश्वर एक है और भक्ति में जात-पात का कोई स्थान नहीं है। उन्होंने समाज में फैले जातिवाद, छुआछूत और भेदभाव का विरोध किया और सभी को समान अधिकार देने की बात की। उनके भजन और दोहे आज भी लोगों को सच्ची भक्ति, करुणा और प्रेम का संदेश देते हैं।
उनकी प्रमुख शिक्षाएँ इस प्रकार हैं: “मन चंगा तो कठौती में गंगा” और “जो कीर्तन करता है, वह सच्चा भक्त है।” संत रविदास की शिक्षाओं ने भारतीय समाज में भक्ति, समानता और एकता का मजबूत आधार तैयार किया।
संत रविदास: एक प्रेरणादायक जीवन
संत रविदास, 15वीं सदी के एक महान भारतीय संत और समाज सुधारक थे। वे भक्ति आंदोलन के एक प्रमुख व्यक्ति थे और उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से सामाजिक समानता, भाईचारे और धार्मिक एकता का संदेश दिया। संत रविदास ने जातिवाद और छुआछूत के खिलाफ आवाज उठाई और सभी मनुष्यों को समान बताते हुए प्रेम और भाईचारे का संदेश दिया। उनकी जयंती हर साल माघ पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है और उनके विचारों को याद किया जाता है।
संत रविदास: जातिवाद के खिलाफ एक योद्धा
संत रविदास, 15वीं सदी के एक महान भारतीय संत और समाज सुधारक थे, जिन्होंने जातिवाद और छुआछूत के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने उस समय के समाज में व्याप्त जातिवाद और भेदभाव के खिलाफ अपनी कविताओं और शिक्षाओं के माध्यम से लोगों को जागरूक किया। संत रविदास ने सभी मनुष्यों को समान बताते हुए प्रेम और भाईचारे का संदेश दिया। उन्होंने लोगों को धार्मिक आडंबरों से दूर रहने और सच्चे मन से भगवान की भक्ति करने की प्रेरणा दी। उनकी जयंती हर साल माघ पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है और उनके विचारों को याद किया जाता है।
- कब मनाई जाती है? – संत रविदास जयंती 12 फरवरी 2025 को माघ पूर्णिमा के दिन मनाई जाएगी। यह दिन उनके अनुयायियों के लिए विशेष महत्व रखता है।
- संत रविदास कौन थे? – वे 15वीं शताब्दी के महान संत और समाज सुधारक थे, जिन्होंने समानता और भक्ति का संदेश दिया।
- कैसे मनाई जाती है? – इस दिन शोभायात्रा निकाली जाती है, भजन-कीर्तन होते हैं और उनके उपदेशों को याद किया जाता है।
- क्यों है खास? – उनकी शिक्षाएँ जातिवाद और भेदभाव से परे, प्रेम और समानता का संदेश देती हैं, जो आज भी प्रेरणा देती हैं।
- क्या सीख सकते हैं? – “मन चंगा तो कठौती में गंगा” जैसे उनके विचार हमें आंतरिक शुद्धता और भक्ति का महत्व समझाते हैं।
- संत रविदास कौन थे? और उनकी जयंती क्यों मनाई जाती है? (10 चरणों में)
- जन्म और प्रारंभिक जीवन – संत रविदास का जन्म 15वीं शताब्दी में उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ था।
- जाति व्यवस्था के खिलाफ संदेश – उन्होंने समाज में फैली छुआछूत और जातिवाद का विरोध किया।
- भक्ति आंदोलन में योगदान – वे भक्ति आंदोलन के प्रमुख संतों में से एक थे और भगवान के प्रति प्रेम व सेवा का संदेश दिया।
- कबीरदास के समकालीन – संत रविदास, संत कबीर के समकालीन थे और दोनों समाज सुधारक थे।
- प्रेरणादायक रचनाएँ – उन्होंने अनेक दोहे और पद लिखे, जो गुरु ग्रंथ साहिब में भी सम्मिलित हैं।
- राजाओं और विद्वानों पर प्रभाव – उनके विचारों से कई राजा और विद्वान प्रभावित हुए, जिनमें मीरा बाई भी शामिल थीं।
- संत रविदास जयंती – उनकी जयंती माघ पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है, जिसे उनके अनुयायी बड़े हर्षोल्लास से मनाते हैं।
- सामाजिक समानता का संदेश – उन्होंने “मन चंगा तो कठौती में गंगा” जैसी शिक्षाओं से आत्मज्ञान और भक्ति को महत्व दिया।
- मंदिर और स्मारक – उनके सम्मान में कई मंदिर और स्मारक स्थापित किए गए हैं, विशेष रूप से वाराणसी में।
- आधुनिक समाज पर प्रभाव – आज भी उनके विचार प्रेरणा देते हैं और सामाजिक समानता को बढ़ावा देने में सहायक हैं।

2. संत रविदास जी का जन्म और प्रारंभिक जीवन
संत रविदास जी का जन्म 15वीं शताब्दी में, विशेष रूप से रात्रिकालीन समय में, वाराणसी के पास गोवर्धनपुर गाँव में हुआ था। उनका जन्म एक चर्मकार (जूता बनाने वाले) परिवार में हुआ था, जो उस समय समाज में नीच माने जाते थे। इस कारण संत रविदास जी को बचपन से ही समाज में भेदभाव और असमानता का सामना करना पड़ा। हालांकि उनका जीवन संघर्षों से भरा हुआ था, लेकिन उनके ह्रदय में हमेशा सत्य, धर्म, और ईश्वर की भक्ति का गहरा प्रेम था।
उनका प्रारंभिक जीवन काफी साधारण था। वे बचपन से ही साधू-संतों की संगत में रहते थे और भक्ति मार्ग की ओर झुके रहते थे। उन्होंने बचपन में ही यह अनुभव किया कि बाहरी रूप से दिखावटी पूजा-पाठ से ज्यादा महत्वपूर्ण है, ह्रदय की शुद्धता और सच्ची भक्ति। संत रविदास जी ने शारीरिक श्रम करते हुए भी भक्ति और आत्मज्ञान की ओर अपनी यात्रा जारी रखी।
3. संत रविदास जी का भक्ति मार्ग की ओर कितना झुकाव थे
संत रविदास जी का भक्ति मार्ग की ओर गहरा झुकाव था, और वे जीवन भर भक्ति और आध्यात्मिकता के मार्ग पर चले। उनका विश्वास था कि ईश्वर एक है, और उसकी भक्ति के लिए किसी भी प्रकार के कर्मकांड या बाहरी दिखावा की आवश्यकता नहीं है। उनका भक्ति मार्ग अत्यधिक सरल, सहज और सीधे तौर पर भगवान के प्रति प्रेम और समर्पण पर आधारित था।
संत रविदास ने भक्ति में मन की शुद्धता, सच्चाई और प्रेम को सर्वोपरि माना। उन्होंने समाज में फैले जातिवाद और ऊँच-नीच के भेदभाव को समाप्त करने के लिए भक्ति को एक सशक्त माध्यम माना। वे भक्ति को व्यक्ति के भीतर की मानसिक और आत्मिक शुद्धता से जोड़ते थे।
रविदास जी का भक्ति मार्ग सच्चे हृदय से, बिना किसी आडंबर के ईश्वर की सेवा करने का था। उनके भजन और दोहे आज भी लोगों को भगवान की भक्ति और समाज में समानता का संदेश देते हैं।
4. संत रविदास जी की शिक्षाएं और विचार कैसे थे
संत रविदास जी की शिक्षाएँ और विचार
- संत रविदास जी भक्ति आंदोलन के महान संत थे, जिन्होंने समाज में समानता, प्रेम और भक्ति का संदेश दिया। उनकी शिक्षाएँ जातिवाद, छुआछूत और सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध थीं। वे मानते थे कि मनुष्य की पहचान उसकी जाति से नहीं, बल्कि उसके कर्मों और भक्ति से होती है।
- 1. ईश्वर की भक्ति और समर्पण
- संत रविदास जी का मानना था कि ईश्वर एक है और उसे पाने के लिए मंदिर-मस्जिद जाने की आवश्यकता नहीं, बल्कि सच्चे मन और प्रेम से भक्ति करने की जरूरत है। उन्होंने कहा:
- “मन चंगा तो कठौती में गंगा”
अर्थ: यदि मन शुद्ध है, तो कहीं भी ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है। - 2. जातिवाद और छुआछूत का विरोध
- उन्होंने समाज में फैले जातिवाद और भेदभाव का विरोध किया। उनके अनुसार, हर मनुष्य समान है और ईश्वर के दरबार में किसी का ऊँच-नीच नहीं होता। उन्होंने कहा:
- “जाति-जाति में जाति है, जो केतन के पात।
रैदास मनुष ना जुड़ सके, जब तक जाति न जात।।”
अर्थ: जब तक समाज में जातिगत भेदभाव बना रहेगा, तब तक सच्ची एकता संभव नहीं होगी। - 3. कर्म और सच्ची भक्ति
- रविदास जी ने निष्काम कर्म और भक्ति को सबसे महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि ईश्वर भक्ति केवल दिखावे के लिए नहीं, बल्कि सच्चे मन से होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि भक्ति में सच्चाई, प्रेम और सेवा होनी चाहिए, तभी उसका सही फल मिलेगा।
- 4. समानता और भाईचारे का संदेश
- संत रविदास जी ने हमेशा समाज में समानता और भाईचारे पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि कर्म ही मनुष्य की सच्ची पहचान है, न कि उसकी जाति या जन्म।
- 5. आध्यात्मिक स्वतंत्रता और प्रेम
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उनका मानना था कि ईश्वर तक पहुँचने के लिए किसी बिचौलिये की जरूरत नहीं, बल्कि हर व्यक्ति अपने कर्मों और भक्ति से मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
5. संत रविदास जी के प्रसिद्ध भजन और दोहे
प्रसिद्ध दोहे:
- “मन चंगा तो कठौती में गंगा”
अर्थ: यदि मन शुद्ध है तो हर स्थान पवित्र हो जाता है। - “जाति-जाति में जाति है, जो केतन के पात।
रैदास मनुष ना जुड़ सके, जब तक जाति न जात।।”
अर्थ: समाज में जब तक जात-पात बनी रहेगी, तब तक सच्ची एकता संभव नहीं है। - “अब कैसे छूटे राम नाम रट लागी”
अर्थ: एक बार राम नाम की भक्ति में रमने के बाद इसे छोड़ना असंभव हो जाता है।
प्रसिद्ध भजन:
- “प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी”
अर्थ: भक्त और भगवान का अटूट संबंध चंदन और पानी की तरह है, जो मिलकर सुगंध फैलाते हैं। - “जो लोग जानत महादेव सदा शिव, सो क्यों कर हठि मरत भवानी”
अर्थ: जो सच्चे ईश्वर को जानते हैं, वे कभी मोह-माया के चक्कर में नहीं पड़ते।
- ये दोहे श्री गुरु रविदास रचनावली” नाम की पुस्तक में लिखा गया है?. और
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6. संत रविदास और मीरा बाई का जीवन परिचय
संत रविदास 15वीं शताब्दी के महान संत, समाज सुधारक और भक्ति आंदोलन के प्रमुख कवि थे। उनका जन्म वाराणसी के पास गोवर्धनपुर गाँव में एक चर्मकार परिवार में हुआ था। वे ईश्वर की भक्ति, समानता और जातिवाद के विरोधी थे। उन्होंने अपने भजनों और दोहों के माध्यम से समाज में प्रेम, भाईचारे और समरसता का संदेश दिया।
संत रविदास का मानना था कि ईश्वर की प्राप्ति के लिए जाति-पाति का कोई महत्व नहीं है, बल्कि सच्ची भक्ति और अच्छे कर्म ही महत्वपूर्ण हैं। उनके प्रसिद्ध दोहों में से एक है:
“मन चंगा तो कठौती में गंगा”
(अर्थात यदि मन पवित्र है तो हर स्थान पवित्र हो जाता है।)
मीरा बाई का जीवन परिचय
मीरा बाई 16वीं शताब्दी की एक महान भक्त कवयित्री थीं, जो भगवान कृष्ण की अनन्य भक्त थीं। उनका जन्म राजस्थान के मेड़ता राज्य में हुआ था। वे बचपन से ही भक्ति में लीन रहती थीं और कृष्ण को अपना स्वामी मानती थीं।
मीरा बाई ने संत रविदास को अपना गुरु माना और उनके सान्निध्य में रहकर आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया। उनके भजन और पद आज भी भक्ति मार्ग पर चलने वालों के लिए प्रेरणादायक हैं।
7. संत रविदास जी की शिक्षाएँ और विचार
- संत रविदास जी भक्ति आंदोलन के महान संत थे, जिन्होंने समाज में समानता, प्रेम और भक्ति का संदेश दिया। उनकी शिक्षाएँ जातिवाद, छुआछूत और सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध थीं। वे मानते थे कि मनुष्य की पहचान उसकी जाति से नहीं, बल्कि उसके कर्मों और भक्ति से होती है।

1. ईश्वर की भक्ति और समर्पण
- संत रविदास जी का मानना था कि ईश्वर एक है और उसे पाने के लिए मंदिर-मस्जिद जाने की आवश्यकता नहीं, बल्कि सच्चे मन और प्रेम से भक्ति करने की जरूरत है। उन्होंने कहा:
“मन चंगा तो कठौती में गंगा”
अर्थ: यदि मन शुद्ध है, तो कहीं भी ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है।
2. जातिवाद और छुआछूत का विरोध
उन्होंने समाज में फैले जातिवाद और भेदभाव का विरोध किया। उनके अनुसार, हर मनुष्य समान है और ईश्वर के दरबार में किसी का ऊँच-नीच नहीं होता। उन्होंने कहा:
- “जाति-जाति में जाति है, जो केतन के पात।
- रैदास मनुष ना जुड़ सके, जब तक जाति न जात।।”
- अर्थ: जब तक समाज में जातिगत भेदभाव बना रहेगा, तब तक सच्ची एकता संभव नहीं होगी।
3. कर्म और सच्ची भक्ति
रविदास जी ने निष्काम कर्म और भक्ति को सबसे महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि ईश्वर भक्ति केवल दिखावे के लिए नहीं, बल्कि सच्चे मन से होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि भक्ति में सच्चाई, प्रेम और सेवा होनी चाहिए, तभी उसका सही फल मिलेगा।
4. समानता और भाईचारे का संदेश
संत रविदास जी ने हमेशा समाज में समानता और भाईचारे पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि कर्म ही मनुष्य की सच्ची पहचान है, न कि उसकी जाति या जन्म।
5. आध्यात्मिक स्वतंत्रता और प्रेम
उनका मानना था कि ईश्वर तक पहुँचने के लिए किसी बिचौलिये की जरूरत नहीं, बल्कि हर व्यक्ति अपने कर्मों और भक्ति से मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
7. संत रविदास जयंती क्यों मनाई जाती है?
संत रविदास जयंती उनके जन्मदिवस की स्मृति में मनाई जाती है। उनका जन्म 15वीं शताब्दी में वाराणसी के पास गोवर्धनपुर गाँव में हुआ था। वे भक्ति आंदोलन के महान संत, समाज सुधारक और कवि थे। उन्होंने समाज में फैली जातिवाद, छुआछूत और भेदभाव जैसी कुरीतियों का विरोध किया और समानता, प्रेम और भक्ति का संदेश दिया।
संत रविदास जयंती माघ पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। इस अवसर पर उनके अनुयायी भजन-कीर्तन, प्रवचन और शोभायात्राएँ निकालते हैं। संत रविदास जी की शिक्षाओं को फैलाने के लिए संगोष्ठियाँ आयोजित की जाती हैं। इस दिन देशभर में उनके मंदिरों में विशेष पूजा और भंडारे का आयोजन होता है, जिसमें सभी जातियों और धर्मों के लोग समानता के भाव से भाग लेते हैं।
- रविदास जी का संदेश था कि ईश्वर की भक्ति में जात-पात का कोई स्थान नहीं है। उनकी जयंती हमें समानता, भाईचारे और सच्ची भक्ति की प्रेरणा देती है। उनके विचार आज भी समाज में प्रेम, सद्भाव और एकता को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
- 8. संत रविदास की शिक्षाएँ और सामाजिक प्रभाव
संत रविदास 15वीं शताब्दी के एक महान संत, समाज सुधारक और भक्त कवि थे। उनकी शिक्षाएँ भक्ति, समानता, प्रेम और मानवता पर आधारित थीं। उन्होंने जातिवाद, छुआछूत और भेदभाव का विरोध किया और कहा कि सभी मनुष्य ईश्वर की संतान हैं। उनका सबसे प्रसिद्ध संदेश था “मन चंगा तो कठौती में गंगा”, जिसका अर्थ है कि यदि मन शुद्ध है तो हर स्थान पवित्र है।
उन्होंने समाज को सिखाया कि ईश्वर की भक्ति में किसी जाति या वर्ग का बंधन नहीं होता। उनके दोहे और भजन लोगों को समानता, प्रेम और करुणा का मार्ग दिखाते हैं। उनकी शिक्षाओं का प्रभाव मीरा बाई जैसी भक्तों पर भी पड़ा।
सामाजिक सुधार की दिशा में उन्होंने ऊँच-नीच के भेदभाव को मिटाने पर जोर दिया। उनकी शिक्षाएँ आज भी प्रासंगिक हैं और हमें सच्ची मानवता का संदेश देती हैं। उनकी विरासत को उनके अनुयायी और “रविदासिया पंथ” के लोग आगे बढ़ा रहे हैं। संत रविदास की शिक्षाएँ समाज में प्रेम, शांति और भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
9. निष्कर्ष
संत रविदास एक महान संत, समाज सुधारक और भक्त कवि थे, जिन्होंने समाज को सच्ची भक्ति और समानता का संदेश दिया। उन्होंने हमेशा जातिवाद, छुआछूत और अन्य सामाजिक बुराइयों का विरोध किया। आज भी उनके विचार लोगों को प्रेरित करते हैं और समाज में प्रेम और समानता का संदेश फैलाते हैं।
उनकी शिक्षाएँ हमें सिखाती हैं कि सच्चा इंसान वही है जो प्रेम, सद्भाव और करुणा से भरा हो, न कि वह जो जात-पात में उलझा हो।
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